रंगकर्म सृष्टि का सबसे पवित्र कर्म है : नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय' Garhwa

रंगकर्म सृष्टि का सबसे पवित्र कर्म है : नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय'
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पंचम वेद के रूप में प्रसिद्ध नाट्यशास्त्र के प्रणेता आचार्य भरतमुनि के अनुसार रंगकर्म सृष्टि का सबसे पवित्र कर्म है। यह बताते हुए कला एवं साहित्य की अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती के झारखंड प्रांत के मंत्री नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय' ने आगे कहा कि जो भी हृदय से रंगकर्म को आत्मसात् करता है उसका आहार और विहार भी अत्यंत सात्विक होता है। उसकी प्रत्येक प्रस्तुतियाँ 'सा कला या विमुक्तये' को केंद्र में रखकर ही सम्पन्न होती हैं।
             नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय' ने बताया कि पहले गाँव में जब पौराणिक नाटक, रामलीला आदि का आयोजन हुआ था तो उसमें गाँव के किशोर, युवा तथा वृद्ध उसकी तैयारी में महीनों पूर्व लग जाते थे।  जिन पात्रों का अभिनय करना होता था उनके चरित्र को अपने अंदर महसूस करने की चेष्टा करते थे।  इससे नाट्य मंचन में गुणवत्ता तो दिखते ही थी,साथ ही साथ उनके अन्दर सुसंस्कार का संचरण भी स्वतः होने लगता था।
                 किंतु जब से ग्रामीण क्षेत्रों में लोक रंगमंच की गतिविधियाँ कम पड़ी हैं तब से वहाँ के किशोरों और युवाओं में अनेक प्रकार की विकृतियाँ देखने को मिल रही हैं। उनके पास रचनात्मक करने के लिए कुछ होता नहीं तो ऐसी स्थिति में वे नकारात्मक सोच और ऊर्जा से ग्रसित होकर समाज के लिए बोझ बनते जा रहे हैं।      
              इस समस्या के उचित समाधान के लिए मेरी दृष्टि में यही उपाय है कि अपने आध्यात्मिक और पौराणिक प्रसंगों से जुड़े कथानकों पर आधारित रंगमंच को पुनर्जीवित किया जाए। हर क्षेत्र के रंगमंच में रुचि रखने वाले कला साधकों को संगठित और प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उन्हें उचित मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाए। तभी रंगकर्म जैसे पवित्र कर्म के प्रभाव से समाज में अपेक्षित सुधार या बदलाव देखने को मिल सकेंगे।


नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय'
        प्रांत मंत्री 
संस्कार भारती झारखण्ड
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         निदेशक 
पं. हर्ष द्विवेदी कला मंच 
नवादा, गढ़वा (झारखण्ड)

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