होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं है वरन् यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है : नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय'
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होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं है वरन् यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है। वसंतोत्सव के नाम से भी जाना जाने वाला यह त्यौहार सभी के मनों में उमंग तो भरता ही है साथ ही साथ आपसी द्वेष व वैमनस्य आदि को खत्म करने का संदेश भी देता है।
होली में लोग आपसी भेदभाव को भूलकर परस्पर गले मिलते हैं। एक दूसरे को शुभकामना देते हैं। होली जब भी आती है तो हर अवस्था के लोगों को अतुल्य आनंद से भर देती है।
पारम्परिक होली गायन सुनने से हमें ज्ञात होता है कि हमारे देवी-देवता तथा महापुरुष भी होली खेलते रहे हैं। होली गायन की परंपरा में भी ऐसे सुंदर-सुंदर और मर्यादित गीत हैं जिन्हें हम पूरे परिवार के साथ मिलकर गा सकते हैं, सुन सकते हैं और पूरे समाज को सुना सकते हैं।
होली में प्रकृति का स्वरूप इस कदर निखरा-निखरा रहता है कि जिसे देखकर ही मन प्रफुल्लित हो उठता है। होली के अवसर पर प्राकृतिक पुष्पों से बनाए गए रंगों का उपयोग करने से हमारी त्वचा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाती है और उसका स्वरूप भी निखर जाता है।
साथ ही इस वसंतोत्सव के समय हमारी शस्य श्यामला धरती विभिन्न प्रकार के नए अन्न प्रदान कर हमें पोषित भी करती है। नए अनाज के उपयोग से बनाए गए विभिन्न प्रकार के व्यंजन भी होली के आनंद को कई गुना बढ़ाने में सहायक होते हैं।
मुझे याद है कि वसंत पंचमी के समय से गाँव-गाँव में होली गायन प्रारंभ हो जाया करता था जो पूरे फाल्गुन मास तक चलता रहता था। चढ़ते फागुन युवाओं की टोली घर-घर जाकर सुरीले अंदाज में सम्वत अर्थात् अगजा या होलिका जलाने हेतु जलावन माँगते हुए कहते थे कि
"ए जजमानी तोरा सोने के केवाड़ी
दु गो गोइठा द, दु गो लकड़ी द..."। इस मधुर आग्रह को सुनना सभी को अतुल्य सुख प्रदान करता रहा है।
होलिका जलाने के समय सभी अवस्था के लोगों के द्वारा हास्य-विनोद के गीत प्रस्तुत कर सभी को आनंद-विभोर कर दिया जाता था।
होली के दिन लोग ढोलक, झाल और मजीरा लेकर होली गायन करते हुए सभी घर-घर घूम कर अपने पूरे गाँव का भ्रमण किया करते थे। जिस दरवाजे पर होली गायन की मंडली पहुँचती उस घर के लोग अपने आप को सौभाग्यशाली समझते थे। लोग प्रतीक्षा करते थे कि होली गायन की मंडली हमारे दरवाजे पर आए और हमें उनका स्वागत करने का अवसर प्राप्त हो। क्योंकि हम मातृ देवो भव, पितृ देवो भव ,आचार्य देवो भव तथा अतिथि देवो भव की भावना से पूरी तरह से अनुप्राणित हैं।
लेकिन अब धीरे-धीरे संयुक्त परिवार की तरह मंडली में होली गायन की आनंददायी परम्परा भी खत्म होती सी प्रतीत हो रही है। हमारी आज की वर्तमान युवा पीढ़ी ना तो इसके महत्व को पूरी तरह समझ पा रही है और ना ही इसे आत्मसात् करने में रुची दिखा रही है। यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। क्योंकि जब तक हमारी संस्कृति अक्षुण्ण रहती है तभी तक हमारा और हमारे राष्ट्र का अस्तित्व कायम रह पाता है। जब-तक इस बात को हम समझ कर उचित आचरण नहीं करेंगे तब-तक हमारे अस्तित्व पर भी संकट मंडराता रहेगा।
इधर कुछ दशकों से होली जैसे पवित्र त्यौहार विकृति का प्रतीक माना जाने लगा है। लोग होली गायन को अश्लीलता का पर्याय मानने को इसलिए विवश होने लगे हैं कि होली गायन के नाम पर तथाकथित कलाकार पता नहीं क्या-क्या प्रस्तुत कर रहे हैं। इस प्रकार के फूहड़ होली गीतों को ना तो सार्वजनिक स्थलों पर बजाया जा सकता है और ना ही पूरे परिवार के साथ बैठकर सुना जा सकता है। ऐसे कुत्सित मानसिकता के लोगों का सामाजिक बहिष्कार अत्यंत आवश्यक जान पड़ता है। यदि समाज पूरी सजगता के साथ गायन के नाम पर फूहड़ता और अश्लीलता परोसने वालों का समय रहते उचित इलाज नहीं करता तो आने वाला समय ऐसा हो जाएगा कि हमें अपनी ही परम्परा अप्रिय लगने लगेगी। इसलिए अत्यंत आवश्यक है कि हमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने हेतु आवश्यकता पड़ने पर कठोर कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। यह सत्य है कि इस सृष्टि को जितना नुकसान दुष्टों की दुष्टता से नहीं है उससे कहीं अधिक नुकसान सज्जनों के चुप रह जाने से होता है।
हजारों ऐसे पारंपरिक होली गीत हैं जिन्हें यदि संगीतबद्ध करके संचार के विभिन्न माध्यमों से प्रसारित किया जाए तो अगली पीढ़ी हमारी समृद्ध परम्पराओं से पूरी तरह से अवगत हो सकेगी होगी। इसके साथ होली के गीत-संगीत का वास्तविक आनंद भी हम परिवार के सभी लोगों के साथ बैठकर उठा सकेंगे।
पवित्र होली के त्यौहार की पवित्रता को बनाए रखने हेतु हमें हर वह कार्य करना चाहिए जो इसके लिए आवश्यक है।
यह सर्व विदित है कि इस सृष्टि का एकमात्र विश्वगुरु भारतवर्ष के सभी पर्व-त्यौहार मर्यादा के उत्कृष्ट उदाहरण होने के साथ-साथ वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी पूरी तरह खरे उतरते हैं।होली भी उनमें से एक है।
"आओ खेलें जी होली अपनों के संग,
लगाएँ सभी को प्रेम का अतुल्य रंग।"
सभी से यही आग्रह होगा कि आप और हम सब मिलकर होली के अवसर पर अपने घरों से निकलें और वही समृद्ध और पारम्परिक होली को मनाने में तन,मन और धन से सहयोग करें। क्योंकि जब तक आप और हम सुसंस्कृत हैं तभी तक अपने राष्ट्र का अस्तित्व है।