मनरेगा में मजदूर के बदले कराऐ जा रहे हैं मशीन से काम Garhwa

मेराल से अमरेश उरांव रिपोर्ट 

मनरेगा में मजदूर के बदले कराऐ जा रहे हैं मशीन से काम।
मेराल प्रखंड क्षेत्र में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी मनरेगा योजना का लाभ मजदूरों को नहीं मिल पा रहा है। इस योजना के तहत पंचायत द्वारा मजदूर के काम को जेसीबी से कराया जा रहा है जबकि कागजों में मजदूरों के नाम से फर्जी जॉब कार्ड बनाकर उनकी हाजिरी दिखाई जा रही है। यह मामला किसी एक गांव का नहीं बल्कि उसे प्रत्येक गांव का है जहां पर मनरेगा के तहत डोभा तालाब मेड़बंदी कुछ सिंचाई कब्रिस्तान शमशान घाट मिट्टी मोरम रोड डालने जैसे काम चलाए जा रहे हैं हो पहले भी इस मामले को लेकर मेराल प्रखंड गढ़वा कई बार चर्चाओं में आए लेकिन कुछ समय के लिए काम बंद कर मामले को शांत कर दिया गया। अब फिर से यह मामला सामने आने लगा है। 
वार्ड सदस्यों द्वारा शिकायत में बताया कि उनके गांव में पंचायत द्वारा मनरेगा कम के काम को जेसीबी मशीन से कराया गया है।यहां तक की मेठ को इसकी जानकारी नहीं रहती है सबूत वीडियो और फोटो भी मौजूद है। आप है कि गांव के धनी लोगों को कागजों में मजदूर दिखाकर उनके नाम से काम की हाजिरी लगाकर मनरेगा राशि को हड़प्पा जा रहा है। जबकि गांव के गरीब लोग मजदूर का इंतजार कर रहे हैं। आप है कि ठेकेदार जेई और पंचायत सचिव रोजगार सेवक प्रमोद राम के साठ गांठ से मामला चल रहा है। जिला प्रशासन और सरकार की अनदेखी के चलते हनन हो रहा है। 
सबसे पहले पंचायत द्वारा किसी भी डोभा को बनाने के लिए मंजूरी ली जाती है। उसके बाद रोजगार सेवक द्वारा अपने लोगों के आधार कार्ड एकत्रित करके उनके नाम पर एमबी से फर्जी तरीके से जॉब कार्ड बनाए जाते हैं इसके बाद कागजों में उन मजदूरों के नाम से मास्टर रोल से उनकी हाजिरी लगाई जाती है। रास्ते पर दो-चार मजदूर के हाथ में कुदाल टोकरी तसला देकर उनका फोटो खींचकर मनरेगा साइट पर अपलोड किया जाता है इसकी आवाज में एमबी रोजगार सेवक को उनका तय हुआ कमीशन दिया जाता है। अलग-अलग बैंकों में मजदूर के नाम से खाते खुलवाए जाते हैं जिनमें पैसा डालने के बाद उसे भी बिना मजदूर के ही साठ गांठ कर निकलवाया जाता है। मनरेगा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार की गारंटी अधिनियम योजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मजदूरों को कम से कम 100 दिनों की गारंटी सुधा मजदूरी देकर आजीविका सुरक्षा देना है। इसके तहत परिवारों के व्यावसायिक सदस्यों को प्रतिदिन 237 रुपए की न्यूनतम मजदूरी पर सार्वजनिक कामों में लगाया जाता है। योजना के तहत अगर आवेदन करने के 15 दिन के अंदर काम नहीं मिलता है तो आवेदक को बेरोजगारी भत्ता मिलने का हक है। वह भी मार ले रहे हैं बिचौलिया।

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