शिष्य और गुरु एक दूसरे के पूरक हैं। गुरु समाज और राष्ट्र के सच्चे धरोहर होते हैं। स्थानीय जीएन कॉन्वेंट +2 स्कूल में गुरू- पूर्णिमा के अवसर पर छात्र-छात्राओं द्वारा अपने शिक्षक- शिक्षिकाओं को तिलक लगाकर और वंदन गीत गाकर सम्मान प्रकट किया।
विद्यालय के निदेशक ने शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए अपनी ओर से उपहार भेंट की। इस अवसर पर निदेशक ने कहा कि गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा का यह पर्व महर्षि वेद व्यास को समर्पित है क्योंकि इस दिन ही महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। भारतीय संस्कृति में इसी दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते है। उन्होंने कहा कि वास्तव में आज के दिन ही शिक्षक दिवस अथवा गुरु दिवस का आयोजन होना चाहिए। वैसे आचार्य देवो भव विचारधारा के साथ हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। संस्कृत में 'गु' का अर्थ होता है अंधकार(अज्ञान) एवं रु का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रुपी अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) रूपी मार्ग को प्रसस्त करते हैं। इस दिन कई महान गुरुओं का जन्म भी हुआ था। इसी दिन गौतम बुद्ध ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया था।
इस पर्व को हिन्दू ही नहीं बल्कि जैन,बौद्ध और सिख धर्म के लोग भी मनाते हैं। माता और पिता अपने बच्चों को संस्कार देते हैं, पर गुरू सभी को अपने बच्चों के समान मानकर ज्ञान और संस्कार से भाव भरते हैं।
कार्यक्रम को सफल बनाने में उपप्राचार्य बसन्त ठाकुर, शिक्षक मुकेश कुमार भारती,नीरा शर्मा, सरिता दुबे,निलम केशरी, अभिषेक पाण्डेय, रिजवाना शाहिन, सुनिता कुमारी, करन दुबे, शिवानी कुमारी, संतोष प्रसाद, अवधेश कुमार आदि के साथ अन्य शिक्षक शिक्षकेत्तर की भूमिका सराहनीय रही।