सतबहिनी झरना तीर्थ में आयोजित 24वें मानस महायज्ञ में श्रद्धालुओं की उमड़ रही है भीड़
साकेत मिश्रा की रिर्पोट
कांडी : सतबहिनी झरना तीर्थ में आयोजित 24वें मानस महायज्ञ में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। अहले सुबह ही यज्ञशाला की परिक्रमा करनेवालों की कतार काफी लंबी हो जाती है। वहीं सभी नौ मंदिरों में पूजा अर्चना शुरू हो जाती है। इस दौरान आठवें दिन के प्रवचन सत्र में श्रीराम कथा को उसके सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर समाज में व्याप्त कूरीतियों व भ्रांतियों के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध पं. अखिलेश मणि शांडिल्य ने कहा कि 90 फीसदी लोग राम के नाम पर फिदा हैं लेकिन राम के काम से उनको कोई मतलब नही है। राम की कथा राम के लिए नहीं, भरत की भरत के लिए नहीं व हनुमान की कथा हनुमान के लिए नहीं है। सुधरना उन्हें नहीं है। घर के भीतर का आइना तुम दिखने लायक हो कि नहीं इसके लिए पर राम कथा का आइना परमात्मा को मुंह दिखाने लायक हो कि नहीं इसके लिए है। बुनियादी सवाल यह है कि समाज को आपने क्या दिया?विंध्याचल से पधारे आचार्य धर्मराज शास्त्री ने कहा कि सतबहिनी विकास समिति के लोगों ने यहां प्रयागराज के त्रिवेणी को साकार कर दिया है। इसका लाभ नहीं लें पाएं तो हमारा दुर्भाग्य है। कथा को सामाजिक संदर्भ देते हुए कहा कि शहरों में तुलसी का पौधा लगाना लोग अपमान समझ रहे। विदेशी फूलों से सुंदरता भले बढ़े सुरक्षा नहीं। गरुड़ पुराण में लिखा है कि जिस घर में सुबह शाम तुलसी के पौधे की आरती होती हो वहां अकाल मृत्यु का प्रवेश जल्दी नहीं होगा - आग नहीं लगेगा। वहां किसी को लेने यमराज के दूत नहीं भगवान नारायण के दूत जाते हैं। चार लाख का विदेशी पेंड़ लगा लो लेकिन मरते समय उसका नहीं तुलसी का पत्ता मुंह में जाएगा। श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा कहते हुए वृंदावन की देवी शिखा चतुर्वेदी ने कहा कि आज आलमारी में भगवान को बिठाया - चार दाने मिश्री का देकर बंद कर दिया। कहा कि आप करोड़पति हों तो भी ठाकुर व बालक की सेवा अपने से करना चाहिए। अब लोग बच्चों व ठाकुर जी को नौकरों के भरोसे छोड़ देते हैं। मनुष्य व पशुओं में ज्यादा अंतर नहीं सब कॉमन है। भेद यह है कि मनुष्य धर्म को जानता है पशु नहीं जानता। मोथा रोहतास के पं. सत्येंद्र कुमार पाठक उर्फ मुन्ना पाठक ने भी श्रीराम कथा कही।