इन ऊंचे मीनारों से नगर को न आंकिए साहब
जरा डूबते उतराते मोहल्लों को देखते जाएं।
हां बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं, कई कंपनियों के बहुमंजिले मॉल, होटल, रेस्टोरेंट, फर्राटे भरतीं चकाचक गाड़ियों से आप नगर के मेयार को मत आंकिए। इस नजरिये से मेदिनीनगर को नजर करना भारी भूल होगी।
वैसे तो नगरपालिका से नगर परिषद, नगर परिषद से नगर निगम तक की छलांग किसी को अभिभूत करने के लिए काफी है। लेकिन यह सरपट यात्रा, मॉल व महलों के कद में बेतहाशा वृद्धि इसी नगर के नामचीन मोहल्ले में लोगों के गंदे पानी में डूबने उतराने को सदा के लिए नहीं ढंक सकता। जहां कभी समाजवादियों के इस शहर में कई सालों से एक दूसरे तरह का समाजवाद नजर आ रहा है। यहां पैदल, साइकिल, मोपेड, बाइक, टोटो, आटो रिक्शा, कार व बड़ी बड़ी मोटरों को बिल्कुल एक तरह की दुर्गति से दो चार होना पड़ता है। सबको एक बराबर की दुर्दशा। है न समाजवाद। हम बात मेदिनीनगर नगर निगम के सुरभि नगर मोहल्ले की कर रहे हैं। पॉश इलाके के रूप में विकसित हो रहे बाइपास रोड में सिंचाई विभाग के कार्यालय से आगे बढ़ने पर अपोलो टायर दुकान के सामने और स्मार्ट वॉशिंग सेंटर की बगल से निकलने वाली सड़क पर सुरभि नगर का बोर्ड लगा हुआ है। ताकि इस मोहल्ले का कोई रास्ता भटके नहीं। हां यहां यह भी बता देना जरूरी है कि यह मेदिनीनगर नगर निगम का वार्ड नंबर आठ का इलाका है। यहां से मोहल्ले के रोड में घुसकर बमुश्किल दो सौ मीटर चलिए। चल लिए तो अब हिचकिए मत। सामने जो दीख रहा है। वह बराबर दिखेगा। पैदल हैं या गाड़ी से बस अपने इष्ट का नाम लेकर घुस जाइए। हां जी यहां सड़क की पूरी चौड़ाई में घुटना भर गहरा नालियों से निकला हुआ गंदा, मल मूत्र व न जाने क्या क्या मिला हुआ पानी भरा हुआ है। वर्षा होने पर इसकी गहराई और बढ़ जाती है। आं हां आप रुकिए मत। इसका कोई उपाय नहीं है। सब पैदल व गाड़ी वाले इसी तरह डूबते उतराते चलते हैं। बस यों समझ लीजिये कि मल मूत्र का दरिया है और डूब के जाना है। आप यहां आ गए इसलिए देख लिए। नगर निगम को यह नहीं दिखता। ताज्जुब होता है इस बात पर कि जीते हुए नुमाइंदों को तो कम दिखने ही लगता है लेकिन ताल ठोंक रहे पहलवानों को क्यों नहीं दिखता। हां सुनने में आया कि इस रौरव नरक को पचाने के लिए इससे आगे 50 गुना 50 फीट का सोख्ता बनवाया गया था। जो चार छह महीने में ही समाप्त हो गया। हां यह अलग बात है कि इसमें जब पानी बढ़ता है तब कई लोगों के अहाते से लेकर आंगन तक जाकर भर जाता है। नतीजा है कि कई लोगों नें इसी दिन के लिए अपने आंगन में बड़ा बड़ा सोख्ता गड्ढा बना रखा है। नगर निगम के वर्तमान या भविष्य कोई इधर का रुख करने की जहमत उठाएंगे? या खामखाह ऐसी उम्मीद सामान्य प्रशासन से भी की जा सकती है क्या? वैसे दुर्भाग्य से यहां के नुमाइंदे का कुछ साल पहले निधन हो चुका है।